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दस्ताने दिल –एक फौजी की
पुछा जब एक फौजी से
सरहद पर रहते हो हमेशा
क्या आपका दिल नहीं धड़कता
अपनों के लिए
क्या आपका दिल नहीं करता
अपनों से मिलने के लिए
कैसे तुम दूर सब से अकेले सरहद पर रह लेते हो
बोला वह फौजी
माना
मुझको भी सावन की पहली बुँदे तड़पा जाती है
माँ बाप ,बीवी बच्चे की याद बहुत सताती है
यादों को इन सबकी दिल में बसा कर रखता हूँ
इन यादों के सहारे दूर सभी से सरहद पर अकेले बसता हूँ
फिर बोला वो इस अंदाज से
सीना अपना तान के
पर दिल मेरा करता प्यार नहीं इनसे सिर्फ
इस दिल में बस्ते है सारे दुनिया वाले
उनकी महहोबत भी दिल में रखता हूँ
उनसे मिली इज़्ज़त को सर पर रखता हूँ
तभी तो दूर सभी से सरहद पर अकेले बसता हूँ
हां दिल में अपने धरती माँ के लिए भी
बेपनाह महुब्बत रखता हूँ
इस माँ के लिए जीता
इसी के लिए मरता हूँ मेरी ज़िंदगी मेरा जनून है
इसकी रक्षा हेतु
दूर सभी से सरहद पर अकेले बसता हूँ
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