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कितनी आसानी से समाज के संस्कृति के पतन
सारा दोष नारी को दे दिया
पर कौन है जो इनको इस मंजर तक ले आया
कौन है जिसने मजबूर किया ऐसे पहरावे को
क्यों अकसर टीवी पर देख हीरोइन्स को
पुरुषों की आँखे खुली रह जाती है
क्यों अकसर पति ही बीवी से वेट लोस्स की दुहाई करता है
पति को परमेश्वेर मानती आई युगों से भारतीय नारी
उसको खुश रखना ही रही पहल उसकी
जब जब जैसे चाहा वैसे ढाल लिया खुद को
समाज के पतन की क्यों वो अकेले ही ले ज़िम्मेदारी
नजरखुद की बदलो
समाज खुदबखुद बदल जायेगा
सादी नजर सादे विचार रखोगे
नारी सादी व् संस्कृत हो जाएगी
जब पापा शराब पी कर रात को घर आते है
माँ के साथ बतमीजी से पेश आते है
तब संस्कार आदमी के कहाँ चले जाते है
कहते है ज़िंदगी की गाड़ी चलती है
दो पहियों से
एक आदमी एक औरत से
फिर हर बार अकेली औरत ही क्यों ज़िम्मेदार
संस्कृति का पतन किया मिल कर सबने
आपने और मैंने भी
चलो आज बदले
खुद को अपनी सोच को
और निर्मित करें
सभ्य समाज
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