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गंगा की व्यथा

innerfeeling
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आसमान में सकून से रहती थी
ना कोई दुःख था ना कोई गम
अफसरा सी नाचती गाती थी
तुम्हारे पूर्वजों के कठोर तप से
तुम्हारे पूर्वजो के आग्रह पर
धरती पर चली आई
विनाश न करे विशाल सवरूप मेरा
शिव की जटाओ में मैं समाई
हर पल हर लम्हा तुम्हारी सोची भलाई
हर इच्छा पूर्ण करती
पापों से तुमको बचाती
पर तुम तो भूल गए मुझे
शृंगारहीन करने लगे मुझे
पैरो तले कुचलने लगे
स्वछ निर्मल सी मेरी काया को
कुरूप तुमने बना दिया
जीवन देती मैं तुमको
जेह्रीला मुझको ही तुमने बना दिया
अपने हितो की खातिर
अपने स्वार्थकी पूर्ति हेतु
पल पल मुझको घायल किया
कभी फेंका कूड़ा कर्कट मुझमे
कभी मुझमें मल त्याग किया
माँ माँ कह कर भी
माँ पर ही गंदगी का वार किया
माँ हु बुरा ना तुम्हारा सोच पाऊगी
गन्दा करते रहो बेशक मुझे
मूक सब सहती जाऊगी
पर एक दिन आएगा ऐसा
तुम्हारे कारन जब मैं सूख जाऊगी
निर्मल जल के स्थान पर
केवल रेत बन कर रह जाऊगी
रहा रवैया ऐसा ही तुम्हारा तो
बताओ तुम ही मुझको
कैसे मैदानों में उतर पाऊगी
कैसे खेत खलिानों को तुम्हारे सींच पाऊगी
पापमुक्त भी न तुम्हें कर पाऊगी
अपनी ही करणी का फल तुम ही भुगतोगे
मैं तो चुप थी चुप हु चुप ही रहूगी
तुम ही कहो
अपने बच्चो को क्या मुख दिखलाओगे
मच जाएगी हाहाकार सब चारों और
तरस जायेगे तुम्हारे बच्चे पानी को
बिन पानी तो कुछ भी नही
ना अन्न न जीवन
पूर्वजो की धरोहर मुझको मिलाकर मिटटी में
आने वाली पीढ़ी को कैसे बचा पाओगे
कैसे उनको तुम संभाल पाओगे
वक़्त है अभी भी सभल जाओ
यूँ न अपनी मनमानी तुम चलाओ
सवारों मुझको दुत्कारो नही
मेरी परवाह की लो तुम ज़िम्मेदारी
मेरे घाटो की करो सफाई
गंदगी ना इसमें जाने दो
फिर से इसको स्वछ बना दो
देखना धरती स्वर्ग बन जाएगी
तुम्हे तुम्हारी पुश्तें भी सराहेगी
वक़्त रहते संभल जाओ
खुद भी जियो मुझे भी जीने दो
मुझको भी कलकल बहने दो
मुझको भी मस्त रहने दो

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