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एक लड़की का डर

innerfeeling
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माँ मुझे लगता है डर
डर लगता है मुझको बाहर जाने से
सूरज की रोशिनी से
चाँद के निकल जाने से
आँगन से रखते बाहर कदम
ना जाने कितनी क्रूर नजरे
उठ जाती है मेरी तरफ
डरी डरी सहमी सहमी सी
आगे बढती जाती हूँ
घबराई सी अपनी मंजिल पर
आखिर पहुच जाती हूँ
स्कूल,कॉलेज,ऑफिस या हो बाज़ार
दिल मेरा अनजाने से शक से
डर जाये हर बार
लगता है मुझको हर पल ऐसे
कोई शख्स पीछे पड़ा हो मेरे जैसे
हर वक़्त हर लम्हा
उठते बैठते ,सोते जागते
छाया रहता जेहन में यह ख्याल
कही दामिनी जैसा ना मेरा भी हाल
इसकी कल्पनामात्र ही
मुझे झकझोर जाती है
बाहर निकलने की मेरी हिम्मत
अक्सर तोड़ जाती है
माँ मुझे डर लगता है
डर लगता है मुझे बाहर जाने से
मुझे नही जाना कभी कहीं
मुझे अपने पल्लू में ही छुपाले कहीं
इस माँ बोली
बेटी ना तू घबरा
अबला नही सबल बन कर तू दिखा
उठती है जो बुरी नजर तुम पर
बन कर सूरज की किरण
उनको तुझे झुकाना है
उठता है जो हाथ तेरी और
बन चंडी उस असुर का
नामोनिशां मिटाना है
किसी और पर नही निर्भर तू
ना ही है निर्बल तू
अपनी शक्ति खुद
तुझको
बन कर आज दिखाना है

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