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वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
सभी ने अपनी संस्कृति को भुलाया है
सभी ने अपने संस्कारो को भुलाया है /
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
बेटो ने अपने फर्जो को भुलाया है
माबाप को भोझ समज कर
वृदाश्रम उन्हें पहुचाया है /
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
माबाप भी तो स्वार्थी हो गये है
अपनी ही ख़ुशी की खातिर
अपने ही बच्चो का बचपन गवाया है /
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
बच्चो को आया के हाथो में देना
माये अपना स्टेटस समजती है
किट्टी में लगाती ठहाके
शीला की जवानी पे झूमती है /
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
पापा घर लेट आते है
बच्चे तब तक सो जाते है
ऑफिस में पापा ने जाम से जाम टकराया है
घर पर तो पापा को बिस्तर ही भय है
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……/
मिया बीवी आधी रात को
झूमते हुए आते है
बूढ़े माबाप से कहें
आप खाना खा लो हम खाकर आये /
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
बच्चे भी शैतान हो गये है
माबाप के लिए आफत सी हो गये है/
दूध बिस्कुट न इन्हें भाये
इनको तो पास्ता ही पसंद आये/
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
न जाने यह कैसा जनून है
पचिमी सभ्यता में रंगे हुए
कर रहे अपनी का सभ्यता खून है
वक़्त न जाने यह कैसा आया है ……
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